मोमबत्ती की ऊर्जा से रॉकेट गया अंतरिक्ष में
एक जर्मन कंपनी ने पहली बार मोमबत्ती वाले मोम की ऊर्जा से रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण किया है. यह रॉकेट छोटे व्यावसायिक उपग्रहों को अंतरिक्ष तक कम खर्चे में पहुंचाएगा.
परीक्षण उड़ान पर रवाना हुआ रॉकेट
7 मई, 2024 को सुबह 5 बजे (जीएमटी) दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में कूनीब्बा के लॉन्च साइट से इसे परीक्षण उड़ान पर भेजा गया. इसका नाम एसआर75 रखा गया है.
एसआर75
परीक्षण में इस्तेमाल हुआ रॉकेट 12 मीटर लंबा और 2.5 टन वजनी है. यह करीब 250 किलो तक का वजन, पृथ्वी से 250 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकता है. समुद्र तल से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बाद अंतरिक्ष की सीमा शुरू हो जाती है.
मोमबत्ती के मोम की ऊर्जा
इस रॉकेट में ऊर्जा के लिए पैराफीन यानी मोमबत्ती के मोम और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया गया है. आमतौर पर रॉकेट में लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है. इस ईंधन को रॉकेट में इस्तेमाल के लिए -432 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है.
हाईइंपल्स
रॉकेट बनाने वाले स्टार्टअप हाईइंपल्स में 65 लोग काम करते हैं. यह जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर से ही निकला हुआ एक स्टार्टअप है. इसे पहले ही तकरीबन 10 करोड़ यूरो की कीमत का ऑर्डर मिल चुका है. यह ऑर्डर उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए है.
उपग्रह भेजने का खर्च घटेगा
हाइड्रोजन की जगह पैराफीन का इस्तेमाल कर खर्च को घटाने की कोशिश है. पैराफीन से उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का खर्च तकरीबन आधा हो जाएगा. अलग अलग रॉकेटों के हिसाब से फिलहाल सबसे सस्ती सेवा भारत की इसरो और इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स मुहैया कराते हैं.
लोगों के पैसे से बना स्टार्टअप
स्टार्टअप के ज्यादातर प्रोजेक्ट निजी पैसे से शुरू हुए हैं हालांकि उसे कुछ सार्वजनिक संस्थाओं से भी पैसा मिला है. हाईइंपल्स को व्यावसायिक उपग्रहों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. यह स्टार्टअप 2032 तक सालाना 70 करोड़ यूरोप का कारोबार करने की चाह रखता है.
हाईइंपल्स का अगला प्रोजेक्ट
अगले साल के आखिर तक कंपनी ने एक बड़ा रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य बनाया है. यह रॉकेट 600 किलो तक वजन वाले उपग्रह को भी अंतरिक्ष में ले कर जा सकेगा. जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल ही में हाईइंपल्स के वर्कशॉप का दौरा किया था.
उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाने का बाजार
बीते दशकों में अंतरिक्ष में उपग्रह से लोगों तक को ले जाने का बाजार बड़ी तेजी से उभरा है. अमेरिका, रूस, यूरोप, भारत, चीन और दूसरे कई देश इस बाजार में हैं. 2000-2010 तक हर साल 70 से 110 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए. 2011-2019 आते आते यह संख्या 129 से 586 तक चली गई. 2020 से अब तक हर साल एक हजार से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं.